Monday, December 15, 2008

सर्द होठों का कफ़न


तुम्हे याद है , जिस जन्म ;

हम जुदा हुए थे !
उस पल में ,
हमने एक दूजे की आँखों में ;
एक उम्र डाल दी थी ..
और होठों से कुछ नही कहा था !

उस पल में सदियों का दर्द ठहर आया था जैसे !
उस पल में दो जुदा जिंदगियों की मौत हुई थी !

आज इस पल में कोई पिछले जन्म की ;
याद तुम्हे मेरे पास ले आई है
और यादों के नश्तर कैसे भरे हुए ज़ख्मों को हरा कर गए है !

ज़िन्दगी की सर्द तनहाइयों में जैसे बर्फ की आग लग चुकी हो !!

आज उम्र के अंधेरे , उसी मोड़ पर हमें ले आयें है
जिस मोड़ पर हम अलग हुए थे और
जिस पल में एक दूजे को ,
हमने सर्द होटों का कफ़न ओढा था ,

दुनियावालो , उस कफ़न का रंग आज भी लाल है !!!

6 comments:

  1. वाह !!विजय जी,बहुत ही बढिया रचना है।बहुत बधिया लिखा है-
    ज़िन्दगी की सर्द तनहाइयों में
    जैसे बर्फ की आग लग चुकी हो !!

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  2. उस पल में सदियों का दर्द ठहर आया था जैसे !
    उस पल में दो जुदा जिंदगियों की मौत हुई थी !

    अच्छी लगी आपकी यह रचना ..

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  3. बहुत सुन्दर रचना!

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  4. kiska dil cheera hai ,kiski haqeeqat bayan ki............har taraf dard hi dard hai.........nishabd kar diya

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  5. हमने एक दूजे की आँखों में ;
    एक उम्र डाल दी थी ..
    और होठों से कुछ नही कहा था !

    उस पल में सदियों का दर्द ठहर आया था जैसे !
    उस पल में दो जुदा जिंदगियों की मौत हुई थी !

    एक जीता जागता एहसास है सोते मर्म को जगा दिया हो जैसे .....
    ऐसे दर्द की बानगी है जो जुबानी बयां करना बहुत कठिन है लिखा क्या है ये तो देखिये
    उस पल में दो जुदा जिंदगियों की मौत हुई थी
    कुछ कहने को बचा ही नहीं jabardast ...

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  6. vijay ji, I will go by the opinion of my dear akshaya man about your very wellversed poems with new dimensions of love ,really beautiful.I will be pleased if I could write in such a manner.
    yours dr.bhoopendra

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