इमरोज़ के लिए ....
ये नज़्म सिर्फ़ एक नज़्म नही है ; ये मेरा सलाम है उस मोहब्बत के दरवेश को [ probably the most sacrificing love soul on earth ] ... और शायद ये मेरी अपनी तलाश को एक परिभाषा देती हुई नज़्म भी है .....
जब मैं इमरोज़ जी से कई साल पहले मिला था , तो हमने खूब paintings की बातें की थी , उन्होंने मुझे बताया की कैसे वो पाकिस्तान में paintings की पढ़ाई पूरी की , फिर हमने OSHO पर बहुत सी बातें की , यूं लगा की मैं ही इमरोज़ हूँ ... हमारे ख्यालात इतने मिलते थे.. फिर हमने अमृता जी के बारें में बातें की , उन्होंने मुझसे दिल खोल कर बातें की , मैं बहुत देर तक मोहब्बत के समंदर में उतरता ,डूबता ,फिर तैरता रहा .. फिर हम अमृता जी से मिलने गए.. मैंने उनसे भी बातें की . मैं जब इमरोज़ जी से अलग हुआ तो ,ऐसा लगा की मेरी रूह पीछे छूट रही हो…..वापसी के वक्त ; मैं बहुत देर तक उस घर को देखता रहा ,जिसमे ये दरवेश रहता है ....
फिर , मैं फिर से ज़िन्दगी की आपा-धापी और जिसे rat race कहते है ,में खो गया . और अब जाकर जब मुझे ये लगा की मैंने अपने बारें में भी जीना चाहिए तो ये नज्मों का सफर २००८ से प्रारंभ हुआ.
बीतें दिनों जब मैंने इमरोज़ जी को अपनी नज़्मे भेजी तो उन्हें बहुत पसंद आई ..फिर मैंने सोचा की क्यों न उन पर एक नज़्म लिखी जाएँ . तीन दिन पहले ये नज़्म लिखी ... so friends here it is ... लेकिन क्या ये सिर्फ़ इमरोज़ की नज़्म है या फिर मेरी भी ? या आपकी भी ? ...............!
" इमरोज़ के लिए....... "
तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार !
दो बूँद अपने इश्क के पैमाने की ,
मुझे भी पिला दे ;
तो ;
मैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊँ , मेरे यार !
तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार !
कौन कहता है कि
मोहब्बत के दरवेश दिखाई नही देते
कोई किसी अमृता से तेरी पहचान मांग ले ....
तेरी चाहत का एक साया ,
मैं भी ओड़ लूँ तो ,
मैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊँ , मेरे यार !
तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार !
रूहानी प्यार के मज़हब को
तुने ही तो सवांरा है मेरे यार ..
किसी नज़्म में ,
मैं भी किसी का ख्याल बनूँ तो
मैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊँ , मेरे यार !
तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार !
किसी सोच की हद से आगे है तू,
किसी दीवानगी की दरगाह है तू ,
किसी के इश्क में ,
मैं भी सजदा करूँ ...
मैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊं , मेरे यार !
तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार !
किस्से कहानियाँ और भी होंगे ,
पर तुझ जैसा कोई दीवाना न होंगा ,
प्यार करने वाले और भी होंगे ;
पर तुझ जैसा कोई परवाना न होंगा ;
मुझे भी अपने जैसा बना दे मेरे यार !
तो कभी, किसी अपने का ; मैं भी इमरोज़ बन जाऊं मेरे यार !
इस ज़िन्दगी में मैं भी मोहब्बत पा लूं मेरे यार !
मैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊं मेरे यार !
तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार !
रूहानी प्यार के मज़हब को
ReplyDeleteतुने ही तो सवांरा है मेरे यार ..
किसी नज़्म में ,
मैं भी किसी का ख्याल बनूँ तो
मैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊँ , मेरे यार !
तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार !
""सारी कायनात जैसे प्यार के रंगों से सराबोर हो गयी है , बेहद खुबसुरत"
regards
इस ज़िन्दगी में मैं भी मोहब्बत पा लूं मेरे यार !
ReplyDeleteमैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊं मेरे यार !
तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार !
बहुत खूब बहुत बढ़िया ..
apne bahut hi sunder kvita imroz ke liye likhi hai.
ReplyDeleteamrita aur imroz ke baare mai jitna bhi padha hai humesha kam hi lagta hai.
bahut hi sundar...aap bahit lucky hai, jo aise mahan kaviyon se mil paye....
ReplyDeleteइस ज़िन्दगी में मैं भी मोहब्बत पा लूं मेरे यार !
ReplyDeleteमैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊं मेरे यार !
तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार !
बेहद खुबसुरत
......बहुत खूब बहुत बढ़िया
mohabbat ke darvesh ko aapka yah salam yakeenan kubool hoga.
ReplyDeleteIMROZ ke pyar ki paribhasha kisi bhi mazhab se oopar hai, zmaane ki har reet se alag hai, khuda ki ibaadat hai. Wo to sach much ek darvesh hai...hm duniyavi log, apni hi garaz mei doobe rehne wale baashinde.. kahaan imroz ho sakte hain bhalaa ??
ReplyDelete---MUFLIS---
रूहानी प्यार के मज़हब को
ReplyDeleteतुने ही तो सवांरा है मेरे यार ..
किसी नज़्म में ,
मैं भी किसी का ख्याल बनूँ तो
मैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊँ , मेरे यार !
तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार !
बहुत ही प्यारा लिखा है आपने इमरोज जी के लिए। मैं भी मिल चुका हूँ उनसे,और जो जज्बात आपने लिखे है वही जज्बात मेरे भी है उनके प्रति। जब जब प्यार की बातें हमेशा होगी अमृता और इमरोज के प्यार को याद किया जाऐगा।
विजय जी, अच्छे भाव हैं इमरोज जी के लिए...पर बहुत मुश्किल...
ReplyDeletejanaab aap kam bhi kahaan hai imroz se.......haseen nazm...khoobsoorat paintings lazwaab sketch aur buddh bhi bahut achhe lage..........
ReplyDeletebas isliye aapse jalan ho rahi hai ke aap amritaa se mil chuke hain,
kaash hame bhi ek ghoont chandni naseeb ho jati
vijay ji
ReplyDeletemere dil ke jazbaton ko aapne lafz de diye..........padhte waqt aankhon mein aansoo aa gaye.........sach ruhani pyar milna har kisi ka naseeb nhi hota..........sab rishtey jism tak hi aakar simat jate hain.......imroz ji jaisa pyar pane ke liye amrita ka hona bhi to jaroori hai..........hai na.
har koi aap jaisa nahi hota.....
ReplyDeleteaap bahut precious ho sabke liye........
apna hamesha khayaal rakhna aapko mhesoos kar sakta....
in shabdon mei......
aap ehsaas bankar mere sath ho..