Friday, December 12, 2008

कोई कैसे तुम्हे भूल जाएँ....

तुम.....
किसी दुसरी ज़िन्दगी का एहसास हो ..
कुछ पराये सपनो की खुशबु हो ..
कोई पुरानी फरियाद हो ..
किस से कहूँ की तुम मेरे हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....

तुम...
किसी किताब में रखा कोई सूखा फूल हो ;
किसी गीत में रुका हुआ कोई अंतरा हो ;
किसी सड़क पर ठहरा हुआ कोई मोड़ हो ;
किस से कहूँ की तुम मेरे हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....

तुम...
किसी अजनबी रिश्ते की आंच हो;
अनजानी धड़कन का नाम हो ;
किसी नदी में ठहरी हुई धारा हो ;
किस से कहूँ की तुम मेरे हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....

तुम...
किसी आंसू में रुखी हुई सिसकी हो ;
किसी खामोशी के जज्बात हो ;
किसी मोड़ पर छूटा हुआ हाथ हो ;
किस से कहूँ की तुम मेरे हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....

तुम... हां, तुम ....
हां , मेरे अपने सपनो में तुम ;
हो हां, मेरी आखरी फरियाद तुम हो ;
हां, मेरी अपनी ज़िन्दगी का एहसास हो ..
मैं तुम्हे कभी नही भूलूंगा कि;
तुम मेरी चाहत का एक हिस्सा हो !!!!
शायद ,सिर्फ़ ख्वाबों में , तुम मेरे हो ....

5 comments:

  1. शानदार अभिव्यक्ति

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  2. jajbaton ki bhavpurna sundar abhivyakti.

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  3. बहुत खूब....सुख दुःख ज़िन्दगी का हिस्सा हैं...याद रखिये....
    नीरज

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