Tuesday, December 30, 2008
आया नव वर्ष आया
आया नव वर्ष ,आया आपके द्वार
दे रहा है ये दस्तक , बार बार !
बीते बरस की बातों को , दे बिसार
लेकर आया है ये , खुशियाँ और प्यार !
खुले बाहों से स्वागत कर ,इसका यार
और मान ,अपने ईश्वर का आभार !
आओ , कुछ नया संकल्प करें यार
मिटायें ,आपसी बैर ,भेदभाव ,यार !
लोगो में बाटें ,दोस्ती का उपहार
और दिलो में भरे , बस प्यार ही प्यार !
अपने घर, समाज, और देश से करें प्यार
हम सब एक है , ये दुनिया को बता दे यार !
कोई नया हूनर ,आओ सीखें यार
जमाने को बता दे , हम क्या है यार !
आप सबको ,है विजय का प्यारा सा नमस्कार
नव वर्ष मंगलमय हो ,यही है मेरी कामना यार !
आया नव वर्ष ,आया आपके द्वार
दे रहा है ये दस्तक , बार बार !
Monday, December 29, 2008
मेरे blogger दोस्तों , ये आपकी दोस्ती के लिए ..
दोस्तों , मुझे सिर्फ़ दो महीने हुए है इस blogging की दुनिया में आए हुए .. और आप लोगो ने इतना प्यार दिया है की बस पूछो मत .... आपके comments मुझे निरंतर ,और बेहतर लिखने की प्रेरणा देतें है ... 2008 में मैंने करीब 50 poems लिखी ; जिसमें से करीब 45 poems मैंने सिर्फ़ November और December में ही लिखी , और ये सम्भव हो सका है , सिर्फ़ आपके प्यार भरे comments के कारण . मैं अपने 10-12 घंटे के busy job में से कुछ समय निकल कर ये नज्में लिख लेता हूँ ... मैं ये सोचता हूँ की आप bloggers भी अब मेरा एक नया परिवार बन गया है .... मैं ,आप सब को तहे दिल से धन्यवाद् देता हूँ ,और आपसे प्रार्थना करता हूँ की ,आप यूँ ही मेरी poems को पढ़कर ,मेरी हौसला अफजाई करते रहे ... मैंने ये दोस्ती की poem कल लिखी ,सिर्फ़ आप blogger दोस्तों के लिए ... पढिंयेंगा; और हमेशा की तरह मुझे अपना स्नेह दीजियेगा ....
दोस्तों ,मुझे कभी भी भूल न जाना;
अपना स्नेह प्यार यूँ ही देते जाना .
दोस्ती , दिल के अंधेरो को दूर करे ,वो रोशनी है ..
और जीने की कड़वाहट मिटायें ,वो चासनी है .
दोस्ती ,ज़िन्दगी की ख्वाहिशों से भरा खजाना है .
दोस्ती , शानदार खवाबो से खूबसूरत नजराना है ..
दोस्ती से बेहतर कोई शराब नही यारो ....
दोस्ती से बढकर हसीं ख्वाब नही यारो ;
दोस्ती से बढकर कोई रिश्ता नही ...
दोस्ती से बढकर कोई जज्बा नही
दोस्ती , वफ़ा की बेहतरीन मिसाल है ,
दोस्ती , ज़िन्दगी का ताज़ा ख़याल है ..
अगर वक्त मिले तो दोस्त बनाओ यारो..
इस से बेहतर कोई और काम नही यारो.....
आपका दोस्त
विजय
Friday, December 26, 2008
अफसाना
यूँ ही एक दिन ,किसी जनम
उससे मुलाखात हुई ;
फिर कुछ बातें हुई ;
और मोहब्बत हो गयी !
फिर,
कुछ जनम साथ चलने के बाद ;
दोनों जुदा हो गए !!
और क्या ......
मोहब्बत के अफ़साने ; बस ऐसे ही होते है ......
बता तो जरा ,
क्या मेरा अफसाना ऐसा नही ,
या तेरा अफसाना ऐसा नही ....
Wednesday, December 24, 2008
मुदद्त
आज मुझे तुम अचानक ही दिख गई
कई बरस बाद.....
एक मुददत के बाद .........
यूँ लगा कि जैसे आकाश में
मेघ घुमड़ घुमड़ कर नाचे हो !
यूँ लगा कि बड़े दिनों बाद ,
मनभरी बारिश हुई हो !
यूँ लगा कि जैसे मैंने तुम्हे
पहली बार देखा हो ...!
तुम्हे याद है ....वो दिन ...
ऐसे ही किसी मोड़ पर तुमने ;
मुझे मुस्करा कर देखा था ...
वो सारी रात मैंने अपने दोस्तों के साथ जाग कर बितायी थी ...
रात भर हमने सिर्फ़ तुम्हारे बारें में ही बातें की थी....
दोस्त सारी रात मुझे तेरे नाम से छेड़ते रहे थे ...
और मैं ,अपने आँखों में तेरे ख्वाब सज़ा रहा था.....
सच , खुशियाँ भी कितनी अच्छी होती है ...
तुमने ....शायद उस दिन भी हरे रंग का कुर्ता पहना था...
तुम्हारा वो उड़ता हुआ दुपट्टा ;
क्या कहूँ ... मैंने अपने आपको उसमे ओढ़ लिया था ..
उस दिन के बाद , कितने सारे दिन ,
यूँ ही हम दोनों ने ;
ख्वाबों का आशियाँ बनाते सजाते ,
ज़िन्दगी के सपनो को दिल से जिया था ....
प्यार !
सच में ज़िन्दगी को जीने के काबिल बना लेता है ..
मैं , तेरे लिए दुनिया सजाने , दुनिया में निकल पड़ा ...
ज़िन्दगी की उम्र को जैसे पंख लग गए हो...
फिर , बड़े बरसो बाद ,मैं जब तुझसे मिला
तेरे लिए बनी हुई ज़िन्दगी की सजावट को लेकर ;
तो तुम्हे किसी दुसरे रंग में देखा था ..
मेरी पानी से भरी धुंधलाती हुई आँखों को
आज तक तेरा वो लाल रंग याद है ...
ज़िन्दगी के मायने अलग है !
एक बार फिर ; मैं सारी रात दोस्तों के साथ था ..
फिर, रात भर हमने सिर्फ़ तुम्हारे बारें में ही बातें की थी....
दोस्तों ने कहा , तुझे भूल जाएँ !
कोई तुम्हे ; कैसे भूल जाएँ !
और मैं ,
जिस ज़िन्दगी को सजाने निकला था ,
उसी ज़िन्दगी की अर्थी को अपने कंधो पर लादकर चल पड़ा....
लेकिन ,सच में ;
आज , तुझे देख कर
बड़ा सकून मिला....
तुम कितनी खुश थी.....
मुझे बड़ी मुदद्त के बाद तेरी खुशी देखने को मिली...!!!
लेकिन ,
मुझे देख कर तुम रो क्यों पड़ी ?
Tuesday, December 23, 2008
कोई एक पल
कभी कभी यूँ ही मैं ,
अपनी ज़िन्दगी के बेशुमार
कमरों से गुजरती हुई ,
अचानक ही ठहर जाती हूँ ,
जब कोई एक पल , मुझे
तेरी याद दिला जाता है !!!
उस पल में कोई हवा बसंती ,
गुजरे हुए बरसो की याद ले आती है
जहाँ सरसों के खेतों की
मस्त बयार होती है
जहाँ बैशाखी की रात के
जलसों की अंगार होती है
और उस पार खड़े ,
तेरी आंखों में मेरे लिए प्यार होता है
और धीमे धीमे बढता हुआ ,
मेरा इकरार होता है !!!
उस पल में कोई सर्द हवा का झोंका
तेरे हाथो का असर मेरी जुल्फों में कर जाता है ,
और तेरे होठों का असर मेरे चेहरे पर कर जाता है ,
और मैं शर्माकर तेरे सीने में छूप जाती हूँ ......
यूँ ही कुछ ऐसे रूककर ; बीते हुए ,
आँखों के पानी में ठहरे हुए ;
दिल की बर्फ में जमे हुए ;
प्यार की आग में जलते हुए ...
सपने मुझे अपनी बाहों में बुलाते है !!!
पर मैं और मेरी जिंदगी तो ;
कुछ दुसरे कमरों में भटकती है !
अचानक ही यादो के झोंके
मुझे तुझसे मिला देते है .....
और एक पल में मुझे
कई सदियों की खुशी दे जाते है ...
काश
इन पलो की उम्र ;
सौ बरस की होती ................
Monday, December 22, 2008
पूरे चाँद की रात
आज फिर पूरे चाँद की रात है ;
और साथ में बहुत से अनजाने तारे भी है...
और कुछ बैचेन से बादल भी है ..
इन्हे देख रहा हूँ और तुम्हे याद करता हूँ..
खुदा जाने ;
तुम इस वक्त क्या कर रही होंगी…..
खुदा जाने ;
तुम्हे अब मेरा नाम भी याद है या नही..
आज फिर पूरे चाँद की रात है !!!
कुछ महान कार्य - इन्हे अवश्य आजमायें
[१] स्कूटर कि डिक्की में दो स्टील के ग्लास और एक थाली , थोड़ा सा सेव - चिवडा , एक पानी की bottle , और एक अपना मनपसंद पौव्वा ..... लेकर अपने अजीज दोस्त के साथ , शहर को बाहर जाती हुई सड़क पकड़ ले .. १५-२० KM जाने के बाद , मैदान और खेत दिखेंगे .. वहां भीतर चले जाएँ और दोनों दोस्त बैठकर " मित्रां दी मेला करे, तुम्बा तुम्बा दारु पिए , और झूम झूम भांगडा करें ............"
[२] दोस्तों के साथ बैठकर कंठ तक पिये , लडाई झगडा करें ,गाली गलोज करे.. और दूसरे दिन कहे.. " यार , साले ,कल कुछ ज्यादा हो गई थी . चल बे , आज फिर वही मिलते है रात को ......"
[३] दोस्त की शादी में " नाग - सपेरे " का और "पतंग बाज़ी " का dance करे [ पहले दो घूँट जरुर लगा ले ]
[ ४] गर्मी के दिनों में घर की छत पर या घर के आँगन में निवाड वाली खटिया डाले ,उस पर नरम चादर डाले , मच्छर अगरबत्ती जलाएं , portable radio on करें , विविधभारती में छायागीत लगाए, पुराने गाने सुनते सुनते सुहानी नींद में सो जाए...
[५] खुली वाली जीप में दोस्तों के साथ बैठे , खूब जोरो से music बजाये , ट्रैफिक वाले का चालान भरे .. २ km चुप चाप चले , फिर तेज़ music play करें , फिर चालान भरे .. फिर २ km चले , और देखे की कौन सा दोस्त पहले बोलता है की " यार जरा आवाज बढाओ बे ... " उसकी धुलाई कर दे ...
[ ६] सारे दोस्त मिलकर एक सिगरेट जला ले , बारी बारी कश ले ... जो दोस्त सिंगल कश में डबल कश ले , उसकी धुलाई कर दे...
[ ७] सारे दोस्त मिले और बैठकर , 10th class की कोई लड़की की याद करें और किसी दोस्त का नाम लेकर जोर से ठठाकर हँसे ...
[८ ] यूँ ही दोस्त मिलकर पागलो की तरह हँसे .. एक दूसरे के गंजे सर , बड़ी हुई तोंद और आते हुए बुढापा को लेकर भद्दे मजाक करे और हँसे ...
[९] कुछ दोस्त मिल जाएँ , एक सस्ता सा guitar और डफली ख़रीदे.. और एक beach पर जाएँ , वहां पर टॉवेल बिछाएं और काले चश्में पहन कर एक बाटली के साथ बैठ जाएँ .. [ बाटली की choices - पानी , कोल्ड ड्रिंक , देसी दारु, कच्ची दारु, महुए की दारु, व्हिस्की, रम , जिन, बियर, या इन सब का मिश्रण ] दो -तीन घूँट भीतर जाने के बाद आप ऐसा guitar और डफली बजायेंगे की बस पूछिए मत.. थोड़े देर के बार आस पास कुछ लोग जमा हो जाएँ तो एक दोस्त टोपी उलटी कर के सबसे पैसे मांग ले .. [ अब चूंकि वहां कोई आपको जानता नही है , इसलिए पैसे मांगने में कोई हर्ज़ नही है ] शाम को उन्ही पैसे से आपकी रात गुलज़ार हो जाएँगी .. दो चार दिन अलग अलग beches में ये आजमाते रहिये .. हो सकता है आपको कोई band या rock group अल्बम के लिए offer कर दे......
[१०] कुछ दोस्त मिल कर horror movie देखने जाएँ , रात का आखरी शो. !! जब भी भूत आयें तो सीट के नीचे मुंह डाल कर अजीब आवाजे निकाले , इस से आपका डर भाग जायेगा और बाकि दर्शको को और डर लगेंगा .
[ ११] कभी कभी साइकिल पर यूँ ही डोलते डोलते , नुक्कड़ तक चले जाईयें , वहां किसी ठेले पर खड़े हो कर कप और बस्सी में चाय पीजिये और ५ रुपये के समोसे खाईये और फिर साइकिल पर डोलते डोलते अपने घर आ जाईये ...
[ १२ ] तन्खवाह की तारीख के पाँचवे दिन , काम से लौटते हुए शहर के किसी अनजाने बार में अकेले चले जाईये , किसी कोने वाली मेज़-कुर्सी पर चले जाईये , वहां बैठकर पहले अपना मोबाइल switch off करें , जूतों को खोलिए .. , शर्ट की कुछ बटने खोल दीजिये , और सबसे बेहतरीन व्हिस्की को सोडे के साथ आर्डर करिए.. साथ में फिश फ्राय या काजू फ्राय मंगा लीजिये . और सिर्फ़ दो पैग पीजिये - दो घंटे में ... न ज्यादा न कम !!!!... और फिर गाने सुनते हुए घर आ जाईये ...
[ १३ ] किसी नदी या नहर के पास चले जाईये . किनारे बैठेये .अपना मोबाइल switch off करें , जूतों को खोलिए .. पैंट को घुटनों तक उठाकर , पैरों को पानी में डाल दीजिये , बहते पानी के साथ अपनी यादों को भी साथ ले आईये .. थोडी देर बाद , अपनी आँखों में ठहरे आंसुओं को पोछें फिर अपने घर चले आईये ..
[ १४ ] कभी कभी रातों को उठ कर किसी पुराने दोस्त को फ़ोन करिए
[ १५ ] स्कूल बस में बैठे बच्चो को देखकर हाथ हिलाएं
[ १६ ] जो कुछ भी आपको मिला है , उसमे ही खुशी ढूँढिये ....
[ १७ ] कुछ यादों को कभी भी नही भूले ..
[ १८ ] इस दुनिया में बहुत कम “अच्छा “ है , आप की जरुरत है इस दुनिया को .. कुछ अच्छा कर जाएँ ...
[ १९ ] ईश्वर को न भूले. उससे और अपने आप से अवश्य डरें ... क्योंकि अक्सर "circle of life " repeat होता है ..
[20 ] और अब ; अपने सारें दोस्तों को ये sms करें " तबियत ठीक नही लग रही थी ...एक तांत्रिक को दिखाया ..तांत्रिक बोला की , भूत का साया है , किसी घोर पापी को sms करों , ठीक हो जओंगे... !!! तुझे sms भेजा है , अब अच्छा महसूस कर रहा हूँ ....... "
May God bless you all.
Saturday, December 20, 2008
सफर
मेरे दोस्त , तय करना है ज़िन्दगी का ये सफर
कभी रोकर और कभी हंसकर ;
बनना न कायर तुम इस से डरकर ,
क्योंकि तय करना है , ज़िन्दगी का ये सफर ;
मिलेंगे साथी कई , हर एक मोड़ पर,
परेशान न हो , कभी पाकर तो कभी खोकर ,
पर किसी न किसी को बनाना जरुर हमसफ़र ,
क्योंकि तय करना है , ज़िन्दगी का ये सफर ;
ऐसा भी होता है, ,कभी कभी मेरे दिलबर ,
कि , आता है , रोना टूटी हुई चाहत पर
पर पथिक बढ़ना है आगे ; तुझे सबकुछ भुलाकर
क्योंकि तय करना है , ज़िन्दगी का ये सफर ;
पागल न होना ,कभी हसीन फूलो को पाकर ,
और चलना न कभी कांटो से दामन बचाकर
कभी - कभी सोना भी पड़ता है काँटों की सेज पर
क्योंकि तय करना है , ज़िन्दगी का ये सफर ;
यूँ तो जीने को जीतें है सब पर,
दिखाओ तो कुछ हिस्सा दूसरो के लिए जीकर
पर जियो न ज़िन्दगी , बार बार मरकर
क्योंकि तय करना है , ज़िन्दगी का ये सफर ;
हाँ तुझे ही तय करना है तेरे ज़िन्दगी का सफर ...
इसलिए मुस्कराते हुए तय कर अपनी ज़िन्दगी का सफर ..
कुछ ऐसा कर जा दोस्त , बन जाए तेरा ये एक महान सफर
कि , आने वाले दिनों में लोग कहे ,
क्या शानदार जिया है इसने अपना ये सफर........
Monday, December 15, 2008
अलविदा
सोचता हूँ
जिन लम्हों को ;
हमने एक दूसरे के नाम किया है
शायद वही जिंदगी थी !
भले ही वो ख्यालों में हो ,
या फिर अनजान ख्वाबो में ..
या यूँ ही कभी बातें करते हुए ..
या फिर अपने अपने अक्स को ;
एक दूजे में देखते हुए हो ....
पर कुछ पल जो तुने मेरे नाम किये थे...
उनके लिए मैं तेरा शुक्रगुजार हूँ !!
उन्ही लम्हों को ;
मैं अपने वीरान सीने में रख ;
मैं ;
तुझसे ,
अलविदा कहता हूँ ......!!!
अलविदा !!!!!!
सर्द होठों का कफ़न
तुम्हे याद है , जिस जन्म ;
हम जुदा हुए थे !
उस पल में ,
हमने एक दूजे की आँखों में ;
एक उम्र डाल दी थी ..
और होठों से कुछ नही कहा था !
उस पल में सदियों का दर्द ठहर आया था जैसे !
उस पल में दो जुदा जिंदगियों की मौत हुई थी !
आज इस पल में कोई पिछले जन्म की ;
याद तुम्हे मेरे पास ले आई है
और यादों के नश्तर कैसे भरे हुए ज़ख्मों को हरा कर गए है !
ज़िन्दगी की सर्द तनहाइयों में जैसे बर्फ की आग लग चुकी हो !!
आज उम्र के अंधेरे , उसी मोड़ पर हमें ले आयें है
जिस मोड़ पर हम अलग हुए थे और
जिस पल में एक दूजे को ,
हमने सर्द होटों का कफ़न ओढा था ,
दुनियावालो , उस कफ़न का रंग आज भी लाल है !!!
रिश्ता
तुझे ढूँढा नही , पर तुझे पा लिया ..
सच !!!
कैसे कैसे जादू होतें है ज़िन्दगी के बाजारों में ....
रिश्ता
अभी अभी मिले है ,
पर जन्मों की बात लगती है
हमारा रिश्ता
ख्वाबों की बारात लगती है
आओं...एक रिश्ता हम उगा ले ;
ज़िन्दगी के बरगद पर ,
तुम कुछ लम्हों की रोशनी फैला दो ,
मैं कुछ यादो की झालर बिछा दूँ ..
कुछ तेरी साँसे , कुछ मेरी साँसे .
इस रिश्ते के नाम उधार दे दे...
आओ , एक खवाब बुन ले इस रिश्ते में
जो इस उम्र को ठहरा दे ;
एक ऐसे मोड़ पर ....
जहाँ मैं तेरी आँखों से आंसू चुरा लूँ
जहाँ मैं तेरी झोली ,खुशियों से भर दूँ
जहाँ मैं अपनी हँसी तुझे दे दूँ ..
जहाँ मैं अपनी साँसों में तेरी खुशबु भर लूँ
जहाँ मैं अपनी तकदीर में तेरा नाम लिख दूँ
जहाँ मैं तुझ में पनाह पा लूँ ...
आओ , एक रिश्ता बनाये
जिसका कोई नाम न हो
जिसमे रूह की बात हो ..
और सिर्फ़ तू मेरे साथ हो ...
और मोहब्बत के दरवेश कहे
अल्लाह , क्या मोहब्बत है !!!
Saturday, December 13, 2008
मैं चलता ही रहा....
चलना है मुझे , इसलिए मैं चलता ही रहा .....
इस सफर के हर बोझ को तो मैं ढोते ही रहा ..
साथ ही कभी - कभी मैं गीत गाते ही रहा ..
भूतकाल को भूल , वक्त के साथ , हर कदम चलते ही रहा....
पर, क्योंकि , जीवनपथ पर चलना है मुझे , इसलिए मैं चलता ही रहा .....
जीवन के हर फूल को मेहनत से मैं सींचते ही रहा .
ज़िन्दगी की अनगिनत मुश्किलों से मैं लड़ते ही रहा
कर्म ही है ,मेरी पूजा , ये मान , उसे मैं करते ही रहा
पर, क्योंकि , जीवनपथ पर चलना है मुझे , इसलिए मैं चलता ही रहा .....
जीवन की धुप छांव की परवाह न कर , मैं तो जीता ही रहा
ज़िन्दगी की हर कड़वाहट को , शिव समान , मैं पीता ही रहा
तड़प के असहनीय क्षणों में भी मैं नीलकंठ बन मुस्कराता रहा ..
पर, क्योंकि , जीवनपथ पर चलना है मुझे , इसलिए मैं चलता ही रहा .....
प्यार के फूल मैं हर एक राहगुजर पर बिखेरते ही रहा ,
बाँट अपनी खुशियाँ दूजे को , जमाने के गम समेटता ही रहा ,
लेकिन , सफर के हर मुकाम पर ; मैं "अपनों" को खोजते ही रहा
पर, क्योंकि , जीवनपथ पर चलना है मुझे , इसलिए मैं चलता ही रहा .....
जीवन रूपी इस मधुबन की खुशबु मैं लेते ही रहा
सुख दुःख की इस नदिया को मैं पार करते ही रहा
मानव धर्म का मैं पालन करते ही रहा ...
पर, क्योंकि , जीवनपथ पर चलना है मुझे , इसलिए मैं चलता ही रहा .....
मैं चलते ही रहूँगा हमेशा ....
Friday, December 12, 2008
कुछ लम्हे इमरोज़ की ज़िन्दगी के , मेरे नाम.......
मित्रो , जब कल मैं अपने घर गया तो , एक खुशी मेरा इंतजार कर रही थी ; सोचता हूँ की आप सब से share करूँ .....
मैंने आपसे कुछ दिन पहले कहा था न कि , मैंने इमरोज़ जी को अपनी नज्में भेजी है , जो उन्हें बहुत पसंद आई है .. कल मैं जब घर गया तो , उनका ख़त था , जिनमें उन्होंने मेरे लिए एक ख़त , मेरे लिए एक नज़्म , अपनी दूसरी नज्मों के साथ भेजा था....
ख़त पढ़कर और ख़त से ज्यादा मेरे लिए लिखी नज़्म पढ़कर ,आँखें नम हो गई ... उस महान इंसान के लिए , जिसने अपनी ज़िन्दगी के कुछ लम्हे मेरे नाम किए...... , मैं उन्हें कैसे धन्यवाद् दूँ ...
फिर सोचता हूँ ,कि वो तो दरवेश है ,मेरी भावनाओ को समझ लेंगे ... मेरे पास अब कोई शब्द नही बचे है .....May God Bless Him Forever....
बस उनका ख़त और उनकी मेरे लिए लिखी नज़्म को यहाँ post कर रहा हूँ और ये कहता हूँ कि :
आसमान के फरिश्तो झाँक कर देखो ,
आज मोहब्बत के दरवेश ने मुझे ख़त लिखा है ...
मैं झुक कर उसके नाम का सजदा करता हूँ ..
और मोहब्बत कि पवित्रता को सलाम करता हूँ .....
कोई कैसे तुम्हे भूल जाएँ....
किसी दुसरी ज़िन्दगी का एहसास हो ..
कुछ पराये सपनो की खुशबु हो ..
कोई पुरानी फरियाद हो ..
किस से कहूँ की तुम मेरे हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....
तुम...
किसी किताब में रखा कोई सूखा फूल हो ;
किसी गीत में रुका हुआ कोई अंतरा हो ;
किसी सड़क पर ठहरा हुआ कोई मोड़ हो ;
किस से कहूँ की तुम मेरे हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....
तुम...
किसी अजनबी रिश्ते की आंच हो;
अनजानी धड़कन का नाम हो ;
किसी नदी में ठहरी हुई धारा हो ;
किस से कहूँ की तुम मेरे हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....
तुम...
किसी आंसू में रुखी हुई सिसकी हो ;
किसी खामोशी के जज्बात हो ;
किसी मोड़ पर छूटा हुआ हाथ हो ;
किस से कहूँ की तुम मेरे हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....
तुम... हां, तुम ....
हां , मेरे अपने सपनो में तुम ;
हो हां, मेरी आखरी फरियाद तुम हो ;
हां, मेरी अपनी ज़िन्दगी का एहसास हो ..
मैं तुम्हे कभी नही भूलूंगा कि;
तुम मेरी चाहत का एक हिस्सा हो !!!!
शायद ,सिर्फ़ ख्वाबों में , तुम मेरे हो ....
Thursday, December 11, 2008
खामोशी
खामोशी को यदि लफ्जो की जुबान दी,
तो प्यार की तकदीरें बदल जाती है !
एक मेरे प्यार की तकदीर है ,
मैं खामोश ही रहता तो मेरा प्यार बदनाम न होता,
किसी अपने के लिए मैं यूँ न तडपता ,
किसी पराये में ;
मैं अपना अक्स न देखता ..
काश इस जनम से उस जनम तक
मैं खामोश ही रहता ...
कोई ,किसी नजूमी को जानता हो तो ;
मुझे बता दे ...
मैं अपनी तकदीर बदलना चाहता हूँ .......!!!
Wednesday, December 10, 2008
इमरोज़ के लिए ....
इमरोज़ के लिए ....
ये नज़्म सिर्फ़ एक नज़्म नही है ; ये मेरा सलाम है उस मोहब्बत के दरवेश को [ probably the most sacrificing love soul on earth ] ... और शायद ये मेरी अपनी तलाश को एक परिभाषा देती हुई नज़्म भी है .....
जब मैं इमरोज़ जी से कई साल पहले मिला था , तो हमने खूब paintings की बातें की थी , उन्होंने मुझे बताया की कैसे वो पाकिस्तान में paintings की पढ़ाई पूरी की , फिर हमने OSHO पर बहुत सी बातें की , यूं लगा की मैं ही इमरोज़ हूँ ... हमारे ख्यालात इतने मिलते थे.. फिर हमने अमृता जी के बारें में बातें की , उन्होंने मुझसे दिल खोल कर बातें की , मैं बहुत देर तक मोहब्बत के समंदर में उतरता ,डूबता ,फिर तैरता रहा .. फिर हम अमृता जी से मिलने गए.. मैंने उनसे भी बातें की . मैं जब इमरोज़ जी से अलग हुआ तो ,ऐसा लगा की मेरी रूह पीछे छूट रही हो…..वापसी के वक्त ; मैं बहुत देर तक उस घर को देखता रहा ,जिसमे ये दरवेश रहता है ....
फिर , मैं फिर से ज़िन्दगी की आपा-धापी और जिसे rat race कहते है ,में खो गया . और अब जाकर जब मुझे ये लगा की मैंने अपने बारें में भी जीना चाहिए तो ये नज्मों का सफर २००८ से प्रारंभ हुआ.
बीतें दिनों जब मैंने इमरोज़ जी को अपनी नज़्मे भेजी तो उन्हें बहुत पसंद आई ..फिर मैंने सोचा की क्यों न उन पर एक नज़्म लिखी जाएँ . तीन दिन पहले ये नज़्म लिखी ... so friends here it is ... लेकिन क्या ये सिर्फ़ इमरोज़ की नज़्म है या फिर मेरी भी ? या आपकी भी ? ...............!
" इमरोज़ के लिए....... "
तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार !
दो बूँद अपने इश्क के पैमाने की ,
मुझे भी पिला दे ;
तो ;
मैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊँ , मेरे यार !
तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार !
कौन कहता है कि
मोहब्बत के दरवेश दिखाई नही देते
कोई किसी अमृता से तेरी पहचान मांग ले ....
तेरी चाहत का एक साया ,
मैं भी ओड़ लूँ तो ,
मैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊँ , मेरे यार !
तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार !
रूहानी प्यार के मज़हब को
तुने ही तो सवांरा है मेरे यार ..
किसी नज़्म में ,
मैं भी किसी का ख्याल बनूँ तो
मैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊँ , मेरे यार !
तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार !
किसी सोच की हद से आगे है तू,
किसी दीवानगी की दरगाह है तू ,
किसी के इश्क में ,
मैं भी सजदा करूँ ...
मैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊं , मेरे यार !
तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार !
किस्से कहानियाँ और भी होंगे ,
पर तुझ जैसा कोई दीवाना न होंगा ,
प्यार करने वाले और भी होंगे ;
पर तुझ जैसा कोई परवाना न होंगा ;
मुझे भी अपने जैसा बना दे मेरे यार !
तो कभी, किसी अपने का ; मैं भी इमरोज़ बन जाऊं मेरे यार !
इस ज़िन्दगी में मैं भी मोहब्बत पा लूं मेरे यार !
मैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊं मेरे यार !
तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; मेरे यार !
Tuesday, December 9, 2008
मौत
मौत
जिंदगी का बोझ अब सहा नही जाता
सोचता हूँ मर ही जाऊं !!
पहले
ज़रा अपने हाथो में तेरा चेहरा संभाल लूँ
ज़रा तेरे होंठो को मेरे दिल में जगह दे दूँ
ज़रा तेरी आंखों को अपनी यादों में समेट लूँ
और आख़िर में ;
तू मुझे अपने जुल्फों से ढक ले !
मेरे रब , अब मुझे तू मौत दे ही दे...!!!
Monday, December 8, 2008
अन्तिम पहर
देखो आज आकाश कितना संछिप्त है,
मेरी सम्पूर्ण सीमायें छु रही है आज इसे;
जिंदगी को सोचता हूँ , मैं नई परिभाषा दूँ.
इसलिए क्षितिज को ढूँढ रही है मेरी नज़र !!!
मैं चाह रहा हूँ अपने बंधंनो को तोड़ना,
ताकि मैं उड़ पाऊं ,सिमट्ते हुए आकाश में;
देखूंगा मैं फिर जीवन को नए मायनों में.
क्योंकि थक चुका है मेरे जीवन का हर पहर !!!
वह क्षितिज कहाँ है ,जहाँ मैं विश्राम कर सकूं;
उन मेरे पलो को ; मैं कैद कर सकूं,
जो मेरे जीवन की अमूल्य निधि कहलायेंगी.
जब आकाश सिमटेगा अपनी सम्पूर्णता से मेरे भीतर. !!!
निशिगंधा के फूलों के साथ तुम भी आना प्रिये,
प्रेम की अभिव्यक्ति को नई परिभाषा देना तुम;
क्षितिज की परिभाषा को नया अर्थ दूँगा मैं.
रात के सन्नाटे को मैं थाम लूंगा , न होंगा फिर सहर !!!
पता है तुम्हे ,वह मेरे जीवन का अन्तिम पहर होंगा,
इसलिए तुम भिगोते रहना ,मुझे अपने आप मे;
खुशबु निशिगंधा की ,हम सम्पूर्ण पृथ्वी को देंगे.
थामे रखना ,प्रिये मुझे ,जब तक न बीते अन्तिम पहर !!!
प्रेम ,जीवन ,मृत्यु के मिलन का होंगा वह क्षण,
अन्तिम पहर मे कर लेंगे हम दोनों समर्पण ;
मैं तुम मे समा जाऊंगा , तुम मुझमे.
जीवन संध्या की पावन बेला मे बीतेंगा हमारा अन्तिम पहर !!!
Saturday, December 6, 2008
पनाह
बड़ी देर से भटक रहा था पनाह की खातिर ;
कि तुम मिली !
सोचता हूँ कि ;
तुम्हारी आंखो में अपने आंसू डाल दूं...
तुम्हारी गोद में अपना थका हुआ जिस्म डाल दूं....
तुम्हारी रूह से अपनी रूह मिला दूं....
पहले किसी फ़कीर से जानो तो जरा ...
कि ,
तुम्हारी किस्मत की धुंध में मेरा साया है कि नही !!!!
Tuesday, December 2, 2008
माँ
आज गाँव से एक तार आया है !
लिखा है कि ,
माँ गुजर गई........!!
इन तीन शब्दों ने मेरे अंधे कदमो की ,
दौड़ को रोक लिया है !
और मैं इस बड़े से शहर में
अपने छोटे से घर की
खिड़की से बाहर झाँक रहा हूँ
और सोच रहा हूँ ...
मैंने अपनी ही दुनिया में जिलावतन हो गया हूँ ....!!!
ये वही कदमो की दौड़ थी ,
जिन्होंने मेरे गाँव को छोड़कर
शहर की भीड़ में खो जाने की शुरुवात की ...
बड़े बरसो की बात है ..
माँ ने बहुत रोका था ..
कहा था मत जईयो शहर मा
मैं कैसे रहूंगी तेरे बिना ..
पर मैं नही माना ..
रात को चुल्हे से रोटी उतार कर माँ
अपने आँसुओं की बूंदों से बचाकर
मुझे देती जाती थी ,
और रोती जाती थी.....
मुझे याद नही कि
किसी और ने मुझे
मेरी माँ जैसा खाना खिलाया हो...
मैं गाँव छोड़कर यहाँ आ गया
किसी पराई दुनिया में खो गया.
कौन अपना , कौन पराया
किसी को जान न पाया .
माँ की चिट्ठियाँ आती रही
मैं अपनी दुनिया में गहरे डूबता ही रहा..
मुझे इस दौड़ में
कभी भी , मुझे मेरे इस शहर में ...
न तो मेरे गाँव की नहर मिली
न तो कोई मेरे इंतज़ार में रोता मिला
न किसी ने माँ की तरह कभी खाना खिलाया
न किसी को कभी मेरी कोई परवाह नही हुई.....
शहर की भीड़ में , अक्सर मैं अपने आप को ही ढूंढता हूँ
किसी अपने की तस्वीर की झलक ढूंढता हूँ
और रातों को , जब हर किसी की तलाश ख़तम होती है
तो अपनी माँ के लिए जार जार रोता हूँ ....
अक्सर जब रातों को अकेला सोता था
तब माँ की गोद याद आती थी ..
मेरे आंसू मुझसे कहते थे कि
वापस चल अपने गाँव में
अपनी मां कि गोद में ...
पर मैं अपने अंधे क़दमों की दौड़
को न रोक पाया ...
आज , मैं तनहा हो चुका हूँ
पूरी तरह से..
कोई नही , अब मुझे
कोई चिट्टी लिखने वाला
कोई नही , अब मुझे
प्यार से बुलाने वाला
कोई नही , अब मुझे
अपने हाथों से खाना खिलाने वाला..
मेरी मां क्या मर गई...
मुझे लगा मेरा पूरा गाँव मर गया....
मेरा हर कोई मर गया ..
मैं ही मर गया .....
इतनी बड़ी दुनिया में ; मैं जिलावतन हो गया !!!!!
Saturday, November 29, 2008
शहीद हूँ मैं .....
शहीद हूँ मैं .....
मेरे देशवाशियों
जब कभी आप खुलकर हंसोंगे ,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
जो अब कभी नही हँसेंगे...
जब आप शाम को अपने
घर लौटें ,और अपने अपनों को
इन्तजार करते हुए देखे,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
जो अब कभी भी मेरा इन्तजार नही करेंगे..
जब आप अपने घर के साथ खाना खाएं
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
जो अब कभी भी मेरे साथ खा नही पायेंगे.
जब आप अपने बच्चो के साथ खेले ,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
मेरे बच्चों को अब कभी भी मेरी गोद नही मिल पाएंगी
जब आप सकून से सोयें
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
वो अब भी मेरे लिए जागते है ...
मेरे देशवाशियों ;
शहीद हूँ मैं ,
मुझे भी कभी याद कर लेना ..
आपका परिवार आज जिंदा है ;
क्योंकि ,
नही हूँ...आज मैं !!!!!
शहीद हूँ मैं …………..
Thursday, November 27, 2008
आज मेरा देश जल रहा है , कोई तो मेरे देश को बचा ले
आज सुबह देखा तो Bombay की घटनाओ ने दिल दहला दिया . मुझे ये बात समझ नही आती है कि कोई भी आतंकवादी , हमारे जैसा सामर्थ्यवान देश में कैसे बार - बार चले आतें है , शायद दुनिया में भारत ही अकेला ऐसा देश है जो इतना सामर्थ्यवान होने के बावजूद इन हमलों को रोक नही पाता है.
अच्छा ; अगर बाहर के आतंकवादी हमलों से हमारा पेट नही भरता , जो आपस में ही धर्म, भाषा, जाती , इत्यादि के नाम पर लड़ लेते है . और इन सारी बातों में सिर्फ़ बेक़सूर लोग मरते है ...
मेरा देश अब पूरी तरह से banana country बन गया है ... किसी को क्या दोष दे... politicians और officers अपनी दुनिया में ही रहतें है ....
आईये दोस्तों मेरे साथ प्रार्थना करें...
आज मेरा देश जल रहा है ,
कोई तो मेरे देश को बचा ले.
कौन है ये ?
कोई हिंदू ,कोई मुस्लिम, कोई सिख या कोई ईसाई ;
क्या इनका कोई चेहरा भी है ?
क्या ये इंसान है ....
क्यों ये मेरे देश की हत्या करतें है ,
क्यों ये मेरी माँ का सीना छलनी करतें है ..
हे प्रभु ;
कोई कृष्ण ,कोई बुद्ध ,कोई नानक , कोई ईसा ;
पैगम्बर बन कर मेरे देश आ जाए ..
मेरे देश को जलने से बचाए .
मेरे देश को मरने से बचाए..
आओं दोस्तों , मिल कर हम सब,
इंसानियत का धर्म आपस में फैलाएं
मिल कर हम सब मेरे देश को बचाएँ ...
मेरे देश को बचाएँ
Wednesday, November 26, 2008
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.......
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
बहुत पुराना सा सब कुछ याद दिला गया ;
मुझको ;
मेरे शहर ने रुला दिया.....
यहाँ की हवा की महक ने बीते बरस याद दिलाये ,
इसकी खुली ज़मीं ने कुछ गलियों की याद दिलायी....
यहीं पहली साँस लिया था मैंने ,
यहीं पर पहला कदम रखा था मैंने ...
इसी शहर ने जिन्दगी में दौड़ना सिखाया था.
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
दूर से आती हुई माँ की प्यारी सी आवाज ,
पिताजी की पुकार और भाई बहनो के अंदाज..
यहीं मैंने अपनों का प्यार देखा था ;
यहीं मैंने परायों का दुलार देखा था ;
कभी हँसना और कभी रोना भी आया था यहीं ,
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
कभी किसी दोस्त की नाखतम बातें..
कभी पढाई की दस्तक , कभी किताबो का बोझ
कभी घर के सवाल ,कभी दुनिया के जवाब ..
कुछ कहकहे ,कुछ मस्तियां , कुछ आंसू ,और कुछ अफ़साने .
थोड़े मन्दिर,मस्जिद और फिर बहुत से शराबखाने ..
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
पहले प्यार की खोई हुई महक ने कुछ सकून दिया
किसी से कोई तकरार की बात ने दिल जला दिया ..
यहीं किसी से कोई बन्धन बांधे थे मैंने ...
किसी ने कोई वादा किया था मुझसे ..
पर जिंदगी के अलग मतलब होते है ,ये भी यहीं जाना था मैंने ..
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
एक अदद रोटी की भूख ने आंखो में पानी भर दिया
एक मंजिल की तलाश ने अनजाने सफर का राही बना दिया..
कौन अपना , कौन पराया , वक्त की कश्ती में, बैठकर;
बिना पतवार का मांझी बना दिया मुझको,
"वही रोटी ,वही पानी ,वही कश्ती ,वही मांझी , मैं आज भी हूँ.."
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
लेकर कुछ छोटे छोटे सपनो को आंखों में ,मैंने ;
जाने किस की तलाश में घर छोड़ दिया,
मुझे जमाने की ख़बर न थी.. आदमियों की पहचान न थी.
सफर की कड़वी दास्ताँ क्या कहूँ दोस्तों ....
बस दुनिया ने मुझे बंजारा बना दिया ..
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
आज इतने बरस बाद सब कुछ याद आया है ..
कब्र से कोई “विजय” निकल कर सामने आया है..
कोई भूख ,कोई प्यास ,कोई रास्ता ,कोई मंजिल ..
किस किस की मैं बात करूं यारों ;
मुझे तो सारा जनम याद आया है.....
आज मेरे शहर ने मुझे बहुत रुलाया है........
Tuesday, November 25, 2008
अपनी बात - I
नाम तो आप जानते ही हो , विजय है , मेरा जन्म 17-11-1966 को नागपुर [ महाराष्ट्र ] में हुआ है , मैं वैसे आँध्रप्रदेश से हूँ. पर मेरा बचपन और जवानी का बहुत सा समय नागपुर में ही गुजरा .
शुरुवाती दिनों में बहुत से दुःख देखे और सबको अपने भीतर समेटे हुए आगे बढ़ा . ज़िन्दगी की परेशानियों ने बहुत कुछ सिखाया और अपनी मंजिल तक पहुँचने में मेरा आत्मबल भी बढाया . [ अगर मैं कहूँ की street lights के नीचे बैठकर पढने से लेकर , तीन तीन दिनों तक भूखा रहकर ,अपनी ज़िन्दगी के सफर को मैंने तय किया है तो , आपको आश्चर्य होंगा ]
पर आगे तो बढ़ना ही था सो सारी मुश्किलों का सामना करते हुए आज यहाँ आप लोगो तक पहुँचा हूँ.
Today I have 6 degrees to my credit ,which includes Engineering, MBA, Economics, Management etc. and I have worked in three companies and having an experience of more than 18 years in Marketing, Business Development and Sales .
I am presently working as Sr. General Manager - Marketing & Sales in MIC Electronics Limited , Hyderabad.
मुझे अध्यात्म में गहरी रूचि है ,और आपको वो अहसास मेरी नज्मों में नज़र आता होंगा. [ in fact I try to put an undertone of spiritual Sufism in my poems ]
मुझे पढने का बहुत शौक है , मैंने करीब ५००० किताबें पढ़ी होंगी , और मेरी personal library में इस वक्त करीब ३००० किताबें होंगी.
मुझे photography का भी बहुत शौक है [ http://photographyofvijay.blogspot.com/ ] ,
मुझे संगीत में गहरी रूचि है , मेरे मनपसंद गायक किशोरकुमार, आशा, जगजीत सिंह है , मैं भी गाना गा लेता हूँ , और मैं drums भी बजा लेता हूँ. और हाँ मौका मिला तो dance भी करता हूँ.. [ recently on my son’s 7th birthday I danced on “ pappu can’t dance saala ]
और मैं basically बहुत comedy में विश्वास रखता हूँ ,और मेरे आस पास की दुनिया को हंसाते रहता हूँ . और हमेशा एक कोशिश की है की मैं एक बेहतर इंसान बन कर रहूँ ,और मैं शायद कामयाब भी हुआ हूँ. मेरी दुनिया मुझसे बहुत प्यार करती है
आप सभी को मेरा personal blog देखने के लिए आमंत्रण दे रहा हूँ . [ http://vijaykumar1966.blogspot.com/ ]
मैंने श्री शिर्डी के साईबाबा पर reserch किया है , लगभग तीन साल तक उनके बारें में information collect करते रहा और अब एक ब्लॉग बनाया है . आप सभी को आमंत्रण दे रहा हूँ , कृपया उस पर visit करिए [ http://shrisaibabaofshirdi.blogspot.com/ ]
मुझे drawings और पेंटिंग्स में भी रूचि है और मेरे ब्लॉग [ http://artofvijay.blogspot.com/ ] पर आपको मेरी कला से रुबुरु कराऊंगा .
और एक बात , मेरे भीतर , अभी भी एक बच्चा है , जो रंगों से प्यार करता है खिलोनो से प्यार करता है और कॉमिक्स से प्यार करता है [ शायद इसलिए भी कि मुझे बचपन में ये सब नही मिला ] any way बहुत जल्दी मैं आप लोगों के लिए कॉमिक्स पर ब्लॉग बनाऊंगा , ताकि आप भी अपने बचपन में खो जाए .
मुझे खाना भी बहुत पसंद है , specially पंजाबी खाना , जब भी मैं Ludhiyana जाता हूँ , मस्त दबा कर खाता हूँ और मोटा बन कर लौटता हूँ.
और हाँ , मैं बहुत आलसी हूँ , जब भी समय मिले तो मैं सो जाता हूँ..
अब बातें करें मेरी नज्मों की ,जिन के कारण मैं आप सभी से जुड़ पाया .
दोस्तों , poetry comes so naturally to me . दोस्तों करीब १९८५ से मैं poems लिख रहा हूँ और अपने २० साल के अन्तराल में करीब २०० -२५० poems लिख पाया [ I think this is a good quality parameter for writing ]
मैंने अपनी सारी नज्में हमेशा एक घंटे के भीतर ही लिख ली है [ except one poem "पाप" ,जो एक super psycho poem है , मैंने अपने एक दोस्त के निजी जीवन पर लिखी है , इसे compose करने के लिए दो दिन लगे , किसी दिन उसको भी publish करूँगा ]
कविताएं मेरे लिए मेरे बच्चों की तरह है, बस मेरी दुनिया में , मैं और मेरी कविताएं..कविताओ के मन से.......मेरी एक छोटी सी कोशिश है कि, मेरी कविताओं से मन की गाठें खुले ,आप थोड़ा ठहर कर पीछे देखें , कुछ याद करें .....कुछ भूलें .....कही रुके हुए कदमो को तलाशे .....कुछ सूखे हुए आँसुओ को देख ले ........किसी को याद कर ले ...किसी को भूल जाएं .... किसी को देख ले ...किसी के बारे में सोच ले...कुछ साँसे ,किसी के नाम कर दे , कुछ साँसे किसी से उधार ले ले...किसी को कुछ दे दे , किसी से कुछ ले ले ......आओ फिर से प्यार कर ले..................
लिखना तो बहुत कुछ चाहता हूँ , पर समय कि कमी है , मैं फिर हाज़िर हो जाऊँगा आपकी खिदमत में .......मैं अपनी कुछ photos यहाँ दे रहा हूँ ..
जाते जाते .. आज मैं जो कुछ भी हूँ , खुदा के करम से , दोस्तों कि दुआओं से, और अपनी मेहनत और आत्मबल से हूँ. मैं अपने घुटनों के बल पर बैठ कर उस परमपिता परमेश्वर को प्रणाम कर धन्यवाद् देता हूँ और उसका शुक्रगुजार होता हूँ .
आप सभी के लिए तीन संदेश :
1. you have to win over yourself , you don't have to fight with others ,fight with yourself and win on you.
2. There is no rehearsal, no retakes, no turning back , so give your best to life and others.
3. हमेशा कोशिश करिये की अच्छा इंसान बने , यकीन मानिए ये कसरत बहुत आसान है ...
-------------
My photos…………………………
विजय - अपनी टीम के साथ coimbatore project में ...
विजय - अभी कुछ दिन पहले ......
विजय --- 17 साल पहले ........................
Monday, November 24, 2008
भोर
रवि ने किया दूर ,जग का दुःख भरा अन्धकार ;
किरणों ने बिछाया जाल ,स्वर्णिम किंतु मधुर
अश्व खींच रहें है रविरथ को अपनी मंजिल की ओर ;
तू भी हे मानव , जीवन रूपी रथ का सार्थ बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
सुंदर प्रभात का स्वागत ,पक्षिगण ये कर रहे
रही कोयल कूक बागों में , भौंरें ये मस्त तान गुंजा रहे ,
स्वर निकले जो पक्षी-कंठ से ,मधुर वे मन को हर रहे ;
तू भी हे मानव , जीवन रूपी गगन का पक्षी बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
खिलकर कलियों ने खोले ,सुंदर होंठ अपने ,
फूलों ने मुस्कराकर सजाये जीवन के नए सपने ,
पर्णों पर पड़ी ओस ,लगी मोतियों सी चमकने ,
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी मधुबन का माली बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
प्रभात की ये रुपहली किरने ,प्रभु की अर्चना कर रही
साथ ही इसके ,घंटियाँ , मंदिरों की एक मधुर धुन दे रही ,
मन्त्र और श्लोक प्राचीन , पंडितो की वाणी निखार रही
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी देवालय का पुजारी बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
प्रक्रति ,जीवन के इस नए भोर का स्वागत कर रही
जैसे प्रभु की सारी सृष्टि ,इस का अभिनन्दन कर रही ,
और वसुंधरा पर ,एक नए युग ,नए जीवन का आव्हान कर रही ,
तू भी हे मानव ,इस जीवन रूपी सृष्टि का एक अंग बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
शायर
" शायर "
सुबह से शाम , और शाम से सुबह ;
ज़िन्दगी यूँ ही बेमानी है दोस्तों ....
किसी अनजान सपने में ,
एक जोगी ने कहा था ;
कि, एक नज़्म लिखो तो कुछ साँसे उधार मिल जायेंगी ...
शायर हूँ मैं ;
और जिंदा हूँ मैं !!!
आसमान के फरिश्तों ;
जरा झुक के देखो तो मुझे....
मुझ जैसा शायर सुना न होंगा ,
मुझ जैसा इंसान देखा न होंगा ...
खुदा मेरे ;
ये साँसे और कितने देर तलक चलेंगी !!
Saturday, November 22, 2008
इंतजार
कि , इसमे तुझे तेरा अक्स मिल जाये ...
अल्लाह का तुझ पर रहम हो ,
तू, किसी की ' हीर ' बन जाये !!!
" इंतजार "
मेरी ज़िन्दगी के दश्त,
बड़े वीराने है
दर्द की तन्हाईयाँ ,
उगती है
मेरी शाखों पर नर्म लबों की जगह.......!!
तेरे ख्यालों के साये
उल्टे लटके ,
मुझे क़त्ल करतें है ;
हर सुबह और हर शाम .......!!
किसी दरवेश का श्राप हूँ मैं !!
अक्सर शफ़क शाम के
सन्नाटों में यादों के दिये ;
जला लेती हूँ मैं ...
लम्हा लम्हा साँस लेती हूँ मैं
किसी अपने के तस्सवुर में जीती हूँ मैं ..
सदियां गुजर गयी है ...
मेरे ख्वाब ,मेरे ख्याल न बन सके...
जिस्म के अहसास ,बुत बन कर रह गये.
रूह की आवाज न बन सके...
मैं मरीजे- उल्फत बन गई हूँ
वीरानों की खामोशियों में ;
किसी साये की आहट का इन्तजार है ...
एक आखरी आस उठी है ;
मन में दफअतन आज....
कोई भटका हुआ मुसाफिर ही आ जाये....
मेरी दरख्तों को थाम ले....
अल्लाह का रहम हो
तो मैं भी किसी की नज़र बनूँ
अल्लाह का रहम हो
तो मैं भी किसी की " हीर " बनूँ...
[ Meanings : दश्त : जंगल // शफ़क : डूबते हुए सूरज की रोशनी // दफअतन : अचानक ]
Friday, November 21, 2008
शादी
तुम्हे याद हो न हो ,
मुझे तो हर बात याद है !
कैसी ख्वाबों की दुनिया थी
तेरी और मेरी .....
तुम्हे याद है
शहर की हर गली में ,
तुम; मेरा साया ढूँढ्ती थी !
तुम्हे याद है ,
तेरे लिए ,मेरी बाहों में
कुल-जहान का सकून था !
तुम्हे याद है ,
मेरी वजूद ही; तेरे लिए ;
सारी दुनिया का वजूद था !
सब कुछ , सच में ..
कुछ पिछले जन्मों की बात लगती है .....
सुना है आज
तेरी शादी है ;
कोई अजनबी ,
तेरे संग ब्याह कर रहा था...
सच ; मैंने भी तूझे ,
कभी बहुत चाहा था............
जिस हाथ ने तेरी मांग भरी ,
काश उस हाथ की उँगलियाँ मेरी होती.....!
जिन कदमो के संग तुने फेरे लिये,
काश उन कदमो के साये मेरे होते....!
जो मंत्र तुम दोनों के गवाह बने,
काश उन्हें मैंने भी दोहराया होता !!
कोई अजनबी तेरे संग ब्याह कर रहा था !!!
शहर वाले तेरी शादी का खाना खा रहे थे ;
मुझे लगा ,
आज मेरी तेरहवी है !!!!
Thursday, November 20, 2008
" गाड़ी "
गाड़ी
कल खलाओं से एक सदा आई कि ,
तुम आ रही हो...
सुबह उस समय , जब जहांवाले ,
नींद की आगोश में हो; और
सिर्फ़ मोहब्बत जाग रही हो..
मुझे बड़ी खुशी हुई ...
कई सदियाँ बीत चुकी थी ,तुम्हे देखे हुए !!!
मैंने आज सुबह जब घर से बाहर कदम रखा,
तो देखा ....
चारो ओर एक खुशबु थी ,
आसमां में चाँद सितारों की मोहब्बत थी ,
एक तन्हाई थी,
एक खामोशी थी,
एक अजीब सा समां था !!!
शायाद ये मोहब्बत का जादू था !!!
मैं स्टेशन पहुँचा , दिल में तेरी तस्वीर को याद करते हुए...
वहां चारो ओर सन्नाटा था.. कोई नही था..
अचानक बर्फ पड़ने लगी ,
यूँ लगा ,
जैसे खुदा ....
प्यार के सफ़ेद फूल बरसा रहा हो ...
चारो तरफ़ मोहब्बत का आलम था !!!
मैं आगे बढ़ा तो ,
एक दरवेश मिला ,
सफ़ेद कपड़े, सफ़ेद दाढ़ी , सब कुछ सफ़ेद था ...
उस बर्फ की तरह , जो आसमां से गिर रही थी ...
उसने मुझे कुछ निशिगंधा के फूल दिए ,
तुम्हे देने के लिए ,
और मेरी ओर देखकर मुस्करा दिया .....
एक अजीब सी मुस्कराहट जो फकीरों के पास नही होती ..
उसने मुझे उस प्लेटफोर्म पर छोडा ,
जहाँ वो गाड़ी आनेवाली थी ,
जिसमे तुम आ रही थी !!
पता नही उसे कैसे पता चला...
मैं बहुत खुश था
सारा समां खुश था
बर्फ अब रुई के फाहों की तरह पड़ रही थी
चारो तरफ़ उड़ रही थी
मैं बहुत खुश था
मैंने देखा तो , पूरा प्लेटफोर्म खाली था ,
सिर्फ़ मैं अकेला था ...
सन्नाटे का प्रेत बनकर !!!
गाड़ी अब तक नही आई थी ,
मुझे घबराहट होने लगी ..
चाँद सितोरों की मोहब्बत पर दाग लग चुका था
वो समां मेरी आँखों से ओझल हो चुके था
मैंने देखा तो ,पाया की दरवेश भी कहीं खो गया था
बर्फ की जगह अब आग गिर रही थी ,आसमां से...
मोहब्बत अब नज़र नही आ रही थी ...
फिर मैंने देखा !!
दूर से एक गाड़ी आ रही थी ..
पटरियों पर जैसे मेरा दिल धडक रहा हो..
गाड़ी धीरे धीरे , सिसकती सी ..
मेरे पास आकर रुक गई !!
मैंने हर डिब्बें में देखा ,
सारे के सारे डब्बे खाली थे..
मैं परेशान ,हैरान ढूंढते रहा !!
गाड़ी बड़ी लम्बी थी ..
कुछ मेरी उम्र की तरह ..
कुछ तेरी यादों की तरह ..
फिर सबसे आख़िर में एक डिब्बा दिखा ,
सुर्ख लाल रंग से रंगा था ..
मैंने उसमे झाँका तो,
तुम नज़र आई ......
तुम्हारे साथ एक अजनबी भी था .
वो तुम्हारा था !!!
मैंने तुम्हे देखा,
तुम्हारे होंठ पत्थर के बने हुए थे.
तुम मुझे देख कर न तो मुस्कराई
न ही तुमने अपनी बाहें फैलाई !!!
एक मरघट की उदासी तुम्हारे चेहरे पर थी !!!!!!
मैंने तुम्हे फूल देना चाहा,
पर देखा..
तो ,सारे फूल पिघल गए थे..
आसमां से गिरते हुए आग में
जल गए थे मेरे दिल की तरह ..
फिर ..
गाड़ी चली गई ..
मैं अकेला रह गया .
हमेशा के लिए !!!
फिर इंतजार करते हुए ...
अबकी बार
तेरा नही
मौत का इंतजार करते हुए.........
Wednesday, November 19, 2008
परायों के घर
सपनो की आंखो से देखा तो,
तुम थी !
मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी,
उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था, मैंने तुम्हारे लिए,
एक उम्र भर के लिए ...
आज कही खो गई थी,
वक्त के धूल भरे रास्तों में ......
शायद उन्ही रास्तों में ..
जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो !!
क्या किसी ने तुम्हे बताया नहीं कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते........
कब्र
जब तुम ज़िन्दगी की टेड़ी-मेढ़ी
और उदास राहों पर
चलकर ,थककर ;
किसी अपने की तलाश करने लगो ,
तो एक पुरानी ,जानी पहचानी राह पर चली जाना ......
ये थोडी सी आसान सी राह है ,
इसमे भी दुःख है, दर्द है ;
पर ये थकाने वाली राह नही है ..
ये मोहब्बत की राह है !!!
जहाँ ये रास्ता ख़त्म होंगा ,
वहां तुम्हे एक कब्र मिलेंगी ;
उस कब्र के पत्थर अब उखड़ने लगे है ,
कब्र से एक झाड़ उग आया है ;
पहले इसमे फूल उगते थे ,अब कांटो से भरा पड़ा है...
कब्र पर कोई अपना , कई दिन पहले ;
कुछ मोमबत्तियां जला कर छोड़ गया था ....
जिसे वक्त की आँधियों ने बुझा दिया था !
अब पिघली हुई मोम आंसुओं की
शक्लें लिए कब्र पर पड़ी है
काश , कोई उस कब्र को सवांरने वाला होता ..
पर मोहब्बत की कब्रों के साथ
ज़माना ऐसा ही सलुख करता है ..
कुछ फूल आस-पास बिखरे पड़े है
वो सब सुख चुके है
पर अब भी चांदनी रातों में उनसे खुशबू आती है .....
चारो तरफ़ बड़ी वीरानी है ..
तुम उस कब्र के पास चली आना ,
अपने आँचल से उसे साफ़ कर देना ;
अपने आंसुओं से उसे धो देना ,
फिर अपने नर्म लबों से ;
उसके सिरहाने को चूम लेना !
वो मेरी कब्र है !!!
वहां तुम्हे सकून मिलेंगा
वहां तुम्हे एहसास होंगा
कि मोहब्बत हमेशा जिंदा रहती है ..!!
मेरी कब्र पर जब तुम आओंगी ;
तो , वहां कि मनहूसियत ;
थोड़े वक्त के लिए चली जायेंगी ,
कुछ यादें ताज़ा हो जायेंगी ..!!
जब सन्नाटा कुछ और गहरा जायेगा ,
तब, तुम्हे एक आवाज सुनाई देंगी ;
तुम्हे मेरी आह सुनाई देंगी ;
क्योकि मेरी वो कब्र
तुमने ही तो बनाई है !!!!
तुम्हे याद आयेगा कि
कैसे तुमने मेरा ज़नाजा
वहां दफनाया था ...!!
वक्त बड़ा बेरहम है ......
जब तुम वापस लौटोंगी
तो , मेरी आँखें ,तुम्हे ..
दूर तलक जातें हुए देखेंगी ....!
तुम;
फिर कब अओंगी मेरी कब्र पर !!!!!!!
Tuesday, November 18, 2008
तू
तो ,
मैं अक्सर सोचती हूँ,
कि
खुदा ने मेरे ख्वाबों को छोटा क्यों बनाया ……
एक ख्वाब की करवट बदलती हूँ तो;
तेरी मुस्कारती हुई आँखे नज़र आती है,
तेरी होठों की शरारत याद आती है,
तेरे बाजुओ की पनाह पुकारती है,
तेरी नाख़तम बातों की गूँज सुनाई देती है,
तेरी बेपनाह मोहब्बत याद आती है .........
तेरी क़समें ,तेरे वादें ,तेरे सपने ,तेरी हकीक़त ॥
तेरे जिस्म की खुशबु ,तेरा आना , तेरा जाना ॥
अल्लाह .....कितनी यादें है तेरी........
दूसरे ख्वाब की करवट बदली तो ,तू यहाँ नही था.....
तू कहाँ चला गया....
खुदाया !!!!
ये आज कौन पराया मेरे पास लेटा है........
Monday, November 17, 2008
झील
कि ,
तुम्हे एक झील दिखा लाऊं ...
पता नही तुमने उसे देखा है कि नही..
देवताओं ने उसे एक नाम दिया है….
उसे जिंदगी की झील कहते है...
बुजुर्ग ,अक्सर आलाव के पास बैठकर,
सर्द रातों में बतातें है कि',
वह दुनिया कि सबसे गहरी झील है
उसमे जो डूबा ,
फिर वह उभर कर नही आ पाया .
उसे जिंदगी की झील कहते है...
आज शाम ,
जब मैं तुम्हे ,अपने संग ,
उस झील के पास लेकर गया ,
तो तुम काँप रही थी ,
डर रही थी;
सहम कर सिसक रही थी.
क्योंकि ;
तुम्हे डर था; कहीं मैं...
तुम्हे उस झील में डुबो न दूँ .
पर ऐसा नही हुआ ..
मैंने तुम्हे उस झील में ;
चाँद सितारों को दिखाया ;
मोहब्बत करने वालों को दिखाया;
उनकी पाक मोहब्बत को दिखाया ;
तुमने बहुत देर तक,
उस झील में ,
अपना प्रतिबिम्ब तलाशा ,
तुम ढूंढ रही थी..
कि
शायद मैं भी दिखूं..
तुम्हारे संग,
पर
ईश्वर ने मुझे छला…
मैं क्या.. मेरी परछाई भी ,
झील में नही थी ..तुम्हारे संग !!!
तुम रोने लगी ....
तुम्हारे आंसू , बूँद बूँद
खून बनकर झील में गिरते गए ..
फिर झील का गन्दा और जहरीला पानी साफ होते गया..
क्योंकि अक्सर जिंदगी की झीलें ..
गन्दी और जहरीली होती है ..
फिर, तुमने
मुझे आँखे भर कर देखा...
मुझे अपनी बांहों में समेटा ...
मेरे माथे को चूमा..
और झील में छलांग लगा दी ...
तुम उसमें डूबकर मर गयी .
और मैं...
मैं जिंदा रह गया ,
तुम्हारी यादों के अवशेष लेकर,
तुम्हारे न मिले शव की राख ;
अपने मन पर मलकर
मैं जिंदा रह गया.
मैं युगों तक जीवित रहूंगा
और तुम्हे आश्चर्य होंगा पर ,
मैं तुम्हे अब भी
अपनी आत्मा की झील में
सदा देखते रहता हूँ..
और हमेशा देखते रहूंगा..
इस युग से अनंत तक ..
अनंत से आदि तक ..
आदि से अंत तक..
देखता रहूंगा ...देखता रहूंगा ...देखता रहूंगा ...
Saturday, November 15, 2008
तस्वीर
तस्वीर
मैंने चाहा कि
तेरी तस्वीर बना लूँ इस दुनिया के लिए,
क्योंकि मुझमें तो है तू ,
हमेशा के लिए....
पर तस्वीर बनाने का साजो समान नही था मेरे पास.
फिर मैं ढुढ्ने निकला ;
वह सारा समान ,
मोहब्बत के बाज़ार में...
बहुत ढूंढा , पर कहीं नही मिला;
फिर किसी मोड़ पर किसी दरवेश ने कहा,
आगे है कुछ मोड़ ,तुम्हारी उम्र के ,
उन्हें पार कर लो....
वहाँ एक अंधे फकीर कि मोहब्बत की दूकान है;
वहाँ ,मुझे प्यार कर हर समान मिल जायेगा..
मैंने वो मोड़ पार किए ,सिर्फ़ तेरी यादों के सहारे !!
वहाँ वो अँधा फकीर खड़ा था ,
मोहब्बत का समान बेच रहा था..
मुझ जैसे, तुझ जैसे,
कई लोग थे वहाँ अपने अपने यादों के सलीबों और सायों के साथ....
लोग हर तरह के मौसम को सहते वहाँ खड़े थे...
शमशान के प्रेतों की तरह .......
उस फकीर की मरजी का इंतज़ार कर रहे थे....
फकीर बड़ा अलमस्त था...
खुदा का नेक बन्दा था...
अँधा था......
मैंने पूछा तो पता चला कि
मोहब्बत ने उसे अँधा कर दिया है !!
या अल्लाह ! क्या मोहब्बत इतनी बुरी होती है..
मैं भी किस दुनिया में भटक रहा था....
खैर ; जब मेरी बारी आई
तो ,
उस अंधे फकीर ने ,
तेरा नाम लिया ,और मुझे चौंका दिया ,
मुझसे कुछ नही लिया.. और
तस्वीर बनाने का साजो समान दिया...
सच... कैसे कैसे जादू होते है मोहब्बत के बाजारों में !!!!
मैं अपने सपनो के घर आया ..
तेरी तस्वीर बनाने की कोशिश की ,
पर खुदा जाने क्यों... तेरी तस्वीर न बन पाई...
कागज़ पर कागज़ ख़त्म होते गए ...
उम्र के साल दर साल गुजरते गये...
पूरी उम्र गुजर गई
पर
तेरी तस्वीर न बनी ,
उसे न बनना था ,इस दुनिया के लिए ....न बनी !!
जब मौत आई तो ,
मैंने कहा ,दो घड़ी रुक जा ;
ज़िन्दगी का एक आखरी कागज़ बचा है ॥उस पर मैं "उसकी" तस्वीर बना लूँ !
मौत ने हँसते हुए उस कागज़ पर ,
तेरा और मेरा नाम लिख दिया ;
और मुझे अपने आगोश में ले लिया .
उसने उस कागज़ को मेरे जनाजे पर रख दिया ,
और मुझे दुनियावालों ने फूंक दिया.
और फिर..
इस दुनिया से एक और मोहब्बत की रूह फना हो गई..
Friday, November 14, 2008
पागल
तेरी साँसे महकती है मेरी साँसों में,
तेरे होंठ दहकते है मेरे होंठों पर,
तेरी जुल्फों का साया है मेरे चेहरे पर ,
सारी दुनिया है मेरे पास ,
पर तू नही।
दुनियावालो देखो तो ज़रा मुझे ॥
सपने चिपका कर रखे है ..
मैंने अपने जिस्म पर !!
लोग कहते है कि,
मैं पागल हो गया हूँ……
और एक दिन मैंने सुना कि ,
तुने भी कहा है ... वो पागल हो गया है ॥
शायद ,
अब मैं ,
सच में ,
पागल हो गया हूँ..
रंगों की दुनिया
कई चाँद की राते तुमने उसके साथ बितायी होंगी,
उसका रंग दूधिया होता है !
कई सूरज के दिन तुने उसके साथ काटे होंगे,
उसका रंग सुनहरा होता है !!
जलते हुए जिस्मों की थकान जब तू उसके संग उतरती होंगी,
तब उसका रंग बादामी होता है !!!
जिस घास पर तू उसके संग लेटकर ख्याल देखती होंगी,
उसका रंग हरा होता है !!!!
जिस आसमान के नीचे ,तुने उसके सपनो को जन्म होंगा;
उसका रंग नीला होता है !!!!!
तुम्हे अपनी शादी का रंग याद है न,
उसका रंग लाल था !!!!!!!
अब तुम्हे मेरी कब्र का रंग पहचानना है ;
उसका रंग मालूम है तुम्हे?
सपने
ज़रा फिर से सुनो.
कहीं मेरी आवाज तो नही,
देखो तो ज़रा ,
देखो ,कहीं तुम्हारी गली में मेरा साया तो नही,
दरवाज़ा तो खोलो ,
शायद ,मैंने दरवाज़ा ठ्कठाकाया है..
कैसी ‘पराई’ नींद में खोयी हुई हो तुम,
सारे सपने झूठे नही होते
देखो तो ज़रा…..शायद मैं आया हूँ !!!!
प्यार
बहुत दर्द होता था मुझे,
सोचता था, कोई खुदा ;
तुम्हारे नाम का फाहा ही रख दे मेरे दर्द पर…
कोई दवा काम ना देती थी…
कोई दुआ काम ना आती थी…
और फिर मैं मर गया ।
जब मेरी कब्र बन रही थी,
तो
मैंने पूछा कि मुझे हुआ क्या था।
लोगो ने कहा;
" प्यार "
Tuesday, November 11, 2008
राह
सूरज चड़ता था और उतरता था....
चाँद चड़ता था और उतरता था....
जिंदगी कहीं भी रुक नही पा रही थी,
वक्त के निशान पीछे छुठे जा रहे थे ,
लेकिन मैं वहीं खड़ा था....
जहाँ तुमने मुझे छोडा था....
बहुत बरस हुए ,तुझे ; मुझे भुलाए हुये !
मेरे घर का कुछ हिस्सा अब ढ़ह गया है !!
मुहल्ले के बच्चे अब जवान हो गए है ,
बरगद का वह पेड़ ,जिस पर तेरा मेरा नाम लिखा था
शहर वालों ने काट दिया है !!!
जिनके साथ मैं जिया ,वह मर चुके है
मैं भी चंद रोजों में मरने वाला हूं
पर,
मेरे दिल का घोंसला ,जो तेरे लिए मैंने बनाया था,
अब भी तेरी राह देखता है.....
Monday, November 10, 2008
सर्द रातें
इन सर्द रातों में ,तुझे कुछ याद हो न हो .....
मुझे तो सारी बातें याद है.......
अब तक , जो तेरे - मेरे साथ गुजरी , और जो नही गुजरी ...
वो सब कुछ याद है ...
और अब मेरे आंसू ओस की बूंदे बन जाती है ..
ऐसी ही एक सर्द रात थी , जब हम कहीं मिले
और एक मुलाकात से दुसरे मुलाकात की बात बनी ..
ऐसी ही एक सर्द रात में तेरे आंसुओ ने मेरी पलकों को भिगोया था ..
और सारी रात हमने कोई पुरानी सी ग़ज़ल सुनी थी ..
ऐसी ही एक सर्द रात में हमने रात भर आलाव तापा था ,
और ज़िन्दगी की राख की आग को अपने जिस्मो पर सहा था......
ऐसी ही एक सर्द रात में हमने वो पुरानी कसमे खायी थी ..
जिनमे मिलने और मिलकर साथ रहने की बातें होती है ..
ऐसी ही एक सर्द रात में तुमने मेरा हाथ एक अँधेरी सड़क के
सूने मोड़ पर छोडा था ..
और मैं तन्हाई का तमाशबीन बन कर रह गया था ..
और उस सर्द रात से , आज तक मुझे हर रात , सर्द रात नज़र आती है ..
मैं तुम्हे याद करता हूँ और अपने आंसुओं से ओस की बूंदे बनाता हूँ...
खुदा जाने, तुम्हे अब ये रातें सर्द लगती है या नही ..
खुदा जाने , तुम्हे अब मेरी याद आती है या नही....
खुदा जाने ,अब किसी सर्द रात को हम दोबारा मिलेंगे या नही ...
आज की रात बहुत सर्द है ..
मालूम होता है ,
मेरी यादो के साथ मेरी जान लेकर जाएँगी...
तब , शायद, किसी सर्द रात को , तुम्हे मेरी याद आयें......
Saturday, October 11, 2008
कोई कैसे तुम्हे भूल जाएँ....
तुम.....
किसी दुसरी ज़िन्दगी का एहसास हो ..
कुछ पराये सपनो की खुशबु हो ..
कोई पुरानी फरियाद हो ..
किस से कहूँ की तुम मेरे हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....
तुम...
किसी किताब में रखा कोई सूखा फूल हो
किसी गीत में रुका हुआ कोई अंतरा हो
किसी सड़क पर ठहरा हुआ कोई मोड़ हो
किस से कहूँ की तुम मेरे हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....
तुम...
किसी अजनबी रिश्ते की आंच हो
किसी अनजानी धड़कन का नाम हो
किसी नदी में ठहरी हुई धारा हो
किस से कहूँ की तुम मेरे हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....
तुम...
किसी आंसू में रुखी हुई सिसकी हो
किसी खामोशी के जज्बात हो
किसी मोड़ पर छूटा हुआ हाथ हो
किस से कहूँ की तुम मेरे हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....
तुम... हां, तुम ........
हां , मेरे अपने सपनो में तुम हो
हां, मेरी आखरी फरियाद तुम हो
हां, मेरी अपनी ज़िन्दगी का एहसास हो ...
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ कि तुम मेरे हो ....
हां, तुम मेरे हो ....
हां, तुम मेरे हो ....
हां, तुम मेरे हो ....
Thursday, September 25, 2008
सिलवटों की सिहरन
मेरे प्रिय दोस्तों , मेरी नई कविता " सिलवटों की सिहरन " आप सब को पेश करता हूँ .मुझे पूरी उम्मीद है की आप सबको मेरा यह नया प्रयास पसंद आयेगा , इस बार thoughts को नए shades दिए है , जो आपको अच्छा लगेंगा . प्यार में अगर दर्द न हो तो वो प्यार कहाँ ..........
सिलवटों की सिहरन
अक्सर तेरा साया
एक अनजानी धुंध से चुपचाप चला आता है
और मेरी मन की चादर में सिलवटे बना जाता है …..
मेरे हाथ , मेरे दिल की तरह
कांपते है , जब मैं
उन सिलवटों को अपने भीतर समेटती हूँ …..
तेरा साया मुस्कराता है और मुझे उस जगह छु जाता है
जहाँ तुमने कई बरस पहले मुझे छुआ था ,
मैं सिहर सिहर जाती हूँ ,कोई अजनबी बनकर तुम आते हो
और मेरी खामोशी को आग लगा जाते हो …
तेरे जिस्म का एहसास मेरे चादरों में धीमे धीमे उतरता है
मैं चादरें तो धो लेती हूँ पर मन को कैसे धो लूँ
कई जनम जी लेती हूँ तुझे भुलाने में ,
पर तेरी मुस्कराहट ,
जाने कैसे बहती चली आती है ,
न जाने, मुझ पर कैसी बेहोशी सी बिछा जाती है …..
कोई पीर पैगम्बर मुझे तेरा पता बता दे ,
कोई माझी ,तेरे किनारे मुझे ले जाए ,
कोई देवता तुझे फिर मेरी मोहब्बत बना दे.......
या तो तू यहाँ आजा ,
या मुझे वहां बुला ले......
मैंने अपने घर के दरवाजे खुले रख छोडे है ........
Thursday, September 11, 2008
मौनता
मौनता
मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,
जिसे सब समझ सके , ऐसी परिभाषा देना ;
मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना.
मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,
ताकि ,मैं अपने शब्दों को एकत्रित कर सकूँ
अपने मौन आक्रोश को निशांत दे सकूँ,
मेरी कविता स्वीकार कर मुझमे प्राण फूँक देना
मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,
मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,
ताकि मैं अपनी अभिव्यक्ति को जता सकूँ
इस जग को अपनी उपस्तिथि के बारे में बता सकूँ
मेरी इस अन्तिम उद्ध्ङ्तां को क्षमा कर देना
मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,
मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,
ताकि ,मैं अपना प्रणय निवेदन कर सकूँ
अपनी प्रिये को समर्पित , अपना अंतर्मन कर सकूँ
मेरे नीरस जीवन में आशा का संचार कर देना
मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,
मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,
ताकि ,मैं मुझमे जीवन की अनुभूति कर सकूँ
स्वंय को अन्तिम दिशा में चलने पर बाध्य कर सकूँ
मेरे गूंगे स्वरों को एक मौन राग दे देना
मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,
मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,
ताकि मुझमे मौजूद हाहाकार को शान्ति दे सकूँ
मेरी नपुसंकता को पौरुषता का वर दे सकूँ
मेरी कायरता को स्वीकृति प्रदान कर देना
मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,
मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,
ताकि मैं अपने निकट के एकांत को दूर कर सकूँ
अपने खामोश अस्तित्व में कोलाहल भर सकूँ
बस, जीवन से मेरा परिचय करवा देना
मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,
मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,
ताकि , मैं स्वंय से चलते संघर्ष को विजय दे सकूँ
अपने करीब मौजूद अन्धकार को एकाधिकार दे सकूँ
मृत्यु से मेरा अन्तिम आलिंगन करवा देना
मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,
मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,
जिसे सब समझ सके , ऐसी परिभाषा देना ;
मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना….
Thursday, July 31, 2008
गाड़ी
कल खलाओं से एक सदा आई कि ,
तुम आ रही हो...
सुबह उस समय , जब जहांवाले ,
नींद की आगोश में हो; और
सिर्फ़ मोहब्बत जाग रही हो..
मुझे बड़ी खुशी हुई ...
कई सदियाँ बीत चुकी थी ,तुम्हे देखे हुए !!!
मैंने आज सुबह जब घर से बाहर कदम रखा,
तो देखा ....
चारो ओर एक खुशबु थी ,
आसमां में चाँद सितारों की मोहब्बत थी ,
एक तन्हाई थी,
एक खामोशी थी,
एक अजीब सा समां था !!!
शायाद ये मोहब्बत का जादू था !!!
मैं स्टेशन पहुँचा , दिल में तेरी तस्वीर को याद करते हुए...
वहां चारो ओर सन्नाटा था.. कोई नही था..
अचानक बर्फ पड़ने लगी ,
यूँ लगा ,
जैसे खुदा ....
प्यार के सफ़ेद फूल बरसा रहा हो ...
चारो तरफ़ मोहब्बत का आलम था !!!
मैं आगे बढ़ा तो ,
एक दरवेश मिला ,
सफ़ेद कपड़े, सफ़ेद दाढ़ी , सब कुछ सफ़ेद था ...
उस बर्फ की तरह , जो आसमां से गिर रही थी ...
उसने मुझे कुछ निशिगंधा के फूल दिए ,
तुम्हे देने के लिए ,
और मेरी ओर देखकर मुस्करा दिया .....
एक अजीब सी मुस्कराहट जो फकीरों के पास नही होती ..
उसने मुझे उस प्लेटफोर्म पर छोडा ,
जहाँ वो गाड़ी आनेवाली थी ,
जिसमे तुम आ रही थी !!
पता नही उसे कैसे पता चला...
मैं बहुत खुश था
सारा समां खुश था
बर्फ अब रुई के फाहों की तरह पड़ रही थी
चारो तरफ़ उड़ रही थी
मैं बहुत खुश था
मैंने देखा तो , पूरा प्लेटफोर्म खाली था ,
सिर्फ़ मैं अकेला था ...
सन्नाटे का प्रेत बनकर !!!
गाड़ी अब तक नही आई थी ,
मुझे घबराहट होने लगी ..
चाँद सितोरों की मोहब्बत पर दाग लग चुका था
वो समां मेरी आँखों से ओझल हो चुके था
मैंने देखा तो ,पाया की दरवेश भी कहीं खो गया था
बर्फ की जगह अब आग गिर रही थी ,आसमां से...
मोहब्बत अब नज़र नही आ रही थी ...
फिर मैंने देखा !!
दूर से एक गाड़ी आ रही थी ..
पटरियों पर जैसे मेरा दिल धडक रहा हो..
गाड़ी धीरे धीरे , सिसकती सी ..
मेरे पास आकर रुक गई !!
मैंने हर डिब्बें में देखा ,
सारे के सारे डब्बे खाली थे..
मैं परेशान ,हैरान ढूंढते रहा !!
गाड़ी बड़ी लम्बी थी ..
कुछ मेरी उम्र की तरह ..
कुछ तेरी यादों की तरह ..
फिर सबसे आख़िर में एक डिब्बा दिखा ,
सुर्ख लाल रंग से रंगा था ..
मैंने उसमे झाँका तो,
तुम नज़र आई ......
तुम्हारे साथ एक अजनबी भी था .
वो तुम्हारा था !!!
मैंने तुम्हे देखा,
तुम्हारे होंठ पत्थर के बने हुए थे.
तुम मुझे देख कर न तो मुस्कराई
न ही तुमने अपनी बाहें फैलाई !!!
एक मरघट की उदासी तुम्हारे चेहरे पर थी !!!!!!
मैंने तुम्हे फूल देना चाहा,
पर देखा..
तो ,सारे फूल पिघल गए थे..
आसमां से गिरते हुए आग में
जल गए थे मेरे दिल की तरह ..
फिर ..
गाड़ी चली गई ..
मैं अकेला रह गया .
हमेशा के लिए !!!
फिर इंतजार करते हुए ...
अबकी बार
तेरा नही
मौत का इंतजार करते हुए.........
Friday, July 25, 2008
दर्द
वो अब तक संभाले हुए है !!
कुछ तेरी खुशियाँ बन गई है
कुछ मेरे गम बन गए है
कुछ तेरी जिंदगी बन गई है
कुछ मेरी मौत बन गई है
जो दर्द तुमने मुझे दिए ,
वो अब तक संभाले हुए है !!
लाश
आज मैंने एक आदमी की लाश देखी
यूँ तो मैंने बहुत सी लाशें देखी है
पर
इस लाश की तरफ़ मैं आकर्षित था
यूँ लगा कि
मैं इस आदमी को पहचानता था
इस आदमी की जिंदगी को जानता था
इस लाश के चारो तरफ़ एक शांती थी
एक युग का अंत था ......
एक प्रारम्भ था .........
मैंने लाश को गौर से देखा ...
मैंने लाश के पैरो को देखा,
उसमे छाले थे और पैर फटे हुए थे...
कमबख्त ने जिंदगी भर जीवन की कठिन राहों पर चला होंगा
मैंने लाश की कमर को देखा,
कमर झुक गई थी और उसमे दर्द उभरा हुआ था
कम्बखत ने जिंदगी भर जीवन का बोझ ढोया होंगा
मैंने लाश के हाथों को देखा,
हाथ की लकीरें फटी हुई थी..
कम्बखत ने जिंदगी भर जीवन को सवांरा होंगा....
मैंने लाश के चेहरे को देखा,
उस पर सारे जहाँ का दुःख छाया था ...
कम्बखत ने जिंदगी भर जीवन के मौसमो को सहा होंगा
मैंने फिर चारो और देखा,
उसके चारो तरफ़ उसके रिश्तेदार थे...
वो सब थे ,जिनकी खातिर वो जिया ,
और एक दिन मर गया ...
कोई दुखी था ,कोई सोच रहा था ,कोई रो रहा था , कोई हंस रहा था
सच में हर कोई जी रहा था और ये मर गया था .....
अब मैं लाश को पहचान गया
वो मेरी अपनी ही लाश थी
मैं ही मर गया था !!
आंसू
उस दिन जब मैंने तुम्हारा हाथ पकड़ा ,
तो तुमने कहा..... नही..
और चंद आंसू जो तुम्हारी आँखों से गिरे..
उन्होंने भी कुछ नही कहा... न तो नही ... न तो हाँ ..
अगर आंसुओं कि जुबान होती तो ..
सच झूठ का पता चल जाता ..
जिंदगी बड़ी है .. या प्यार ..
इसका फैसला हो जाता...
शमशान
तो देखा , वहाँ चार कब्रें बनी थी
दो मेरी वाली , दो तेरी वाली
मैं काफी देर तक खड़ा रहा
शमशान में एक जिस्म बन कर
फिर मैंने वहां के फ़कीर से पुछा ,
कि ये कब्रें किसने बनाया ,
फ़कीर ने एक उंगली उठा कर कहा
खुदा ने और उसकी बनाई हुई तकदीरों ने
मैंने ठहर ठहर कर पुछा ,
इन कब्रों पर मट्टी किसने डाली
फ़कीर ने कहा , वक्त ने
मैं बड़ी देर तक चुप रहा
फ़कीर ने मुझसे पुछा
तुम कौन हो?
मैंने रोते हुए कहा..
मैंने ही तो इन कब्रों को खोदा है....
Sunday, February 10, 2008
आओ इश्क की बातें कर ले…….
आओ इश्क की बातें कर ले , आओ खुदा की इबादत कर ले ,
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!
लबो पर कोई लफ्ज़ न रह जाए, खामोशी जहाँ खामोश हो जाए ;
सारे तूफ़ान जहाँ थम जाये , जहाँ समंदर आकाश बन जाए......!
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!
तुम अपनी आंखो में मुझे समां लेना , मैं अपनी साँसों में तुम्हे भर लूँ ,
ऐसी बस्ती में चले चलो , जहाँ हमारे दरमियाँ कोई वजूद न रह जाए !
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!
कोई क्या दीवारे बनायेंगा , हमने अपनी दुनिया बसा ली है ,
जहाँ हम और खुदा हो, उसे हमने मोहब्बत का आशियाँ नाम दिया है.!
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!
मैं दरवेश हूँ तेरी जन्नत का ,रिश्तो की क्या कोई बातें करे.
किसी ने हमारा रिश्ता पूछा ,मैंने दुनिया के रंगों से तेरी मांग भर दी !
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!
मोहब्बत और क्या किया जाये किसी से , ये तो मोहब्बत की इन्तेहाँ हो गई
किसी ने मुझसे खुदा का नाम पूछा और मैंने तेरा नाम ले लिया.................!
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!
आओ इश्क की बातें कर ले , आओ खुदा की इबादत कर ले ,
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!
विजय कुमार
एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता
घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
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घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
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मिलना मुझे तुम उस क्षितिझ पर जहाँ सूरज डूब रहा हो लाल रंग में जहाँ नीली नदी बह रही हो चुपचाप और मैं आऊँ निशिगंधा के सफ़ेद खुशबु के साथ और त...